मनवा मेरे तू क्यों इतना घबडाता ,
जब तेरा है मालिक भाग्यविधाता
क्यूँ चिंता तुझे कल - परसों की ,
क्यूँ प्लानिंग है तेरी बरसों की ,
जब अंतर्मन में तू भी ज्ञाता ,
हर कण प्रभुइछा से ही हिल पाता.
कल क्या होगा परसों क्या ये तो पहले से ही तय है ,
किस और गिरेगा पासा इस बार , ये भी अदि से निश्चय है
छोड़ दे चिंता , छोड़ गणित ,
बस विश्वास तू कर अडिग , अमित
मत लड़ो हवा से , तैर मत विपरीत बहाव
ठहर इक पल समझ हवा को ,
उपयोग करो विपरीत दशा भी , यही सिखाये हमें है ताओ
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