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मेरे लिए नहीं!!

उसकी आंखें खुलीं! वो किसी जादुई जैसी जगह पर खुद को पा रहा था। वो बादलो पर लेटा हुआ था, कुछ अलग सी रोशनी थी, ये सब देखकर वो अचम्भे में डूबा हुआ था। 

उसे याद आ रहा था की वो तो कहीं किसी अस्पताल की बेड पर था और हरे कपड़ों में डॉक्टर नर्स आदि उसके आस पास घूम रहे थे। उस समय उसे काफी असहनीय दर्द भी हो रहा था।

फिर ये वो कहाँ आ गया था? ये जरूर कोई सपना होगा। वो उठा और  उठ के खड़ा हुआ। तभी पीछे से किसी ने उसका नाम पुकारा। घूम के देखा तो एक सफेद दाढ़ी वाले , आभा युक्त चेहरे वाले पुरुष एक सोने के सिंहासन पर बैठे हुए उसे अपनी ओर आने का इशारा कर रहे थे।

उसका अचरज और बढ़ गया। वो उनके पास गया और कांपती आवाज़ में पूछा "आप कौन हैं? ये मैं कहाँ हूँ? "

उन सज्जन ने कहा " मैं तुम्हारा भगवान हूँ! तुम मेरे पास हो।"

उसने खुशी से कहा "क्या में स्वर्ग में हूँ?"
भगवान : "क्या, स्वर्ग? नहीं, स्वर्ग में तो तुम पहले थे, जब तुम जीवित थे!"

उसने अचंभे से पूछा "क्या? और नर्क?"
भगवान : "वो भी वहीँ था।"

भक्त : "क्या? मतलब? "
भगवान : "मतलब , वही तुम्हारा जीवन था , वही तुम्हारी दुनिया ,वही तुम्हारा सब कुछ था, चाहे उसे जो बना लो, स्वर्ग बना लो या नर्क बना लो, ख़ुश रहो तो स्वर्ग था, दुखी रहो तो नरक था!"

भक्त : "ये आप क्या कह रहे हैं प्रभु? मैने तो पढा था, मुझे तो यही बताया गया था, यही पता था की आप दयालु हैं और मरने के बाद अच्छे लोगों को स्वर्ग देते हैं!"
भगवान : "मैंने ऐसा कब कहा या लिखा? ये सब तो तुम इंसानों ने ही कहा और लिखा है। और ये मरने के बाद कुछ  देने में क्या दया हुई?'

भक्त " तो वो सब जो, स्वर्ग में अनंत काल तक, सोने के महल , अप्सराएं , स्वादिष्ट पकवान, उत्तम शराब ये सब अनंत काल के सुख ...?" 

भगवान हंसे : "अनंत काल, मतलब हज़ारों, लाखों , करोड़ो , अरबों साल? इतना समय तो भूल जाओ क्या वो सारे पकवान, सुख ये अगर लगातार मिले, तो क्या तुम 1 महीने में ही इनसे बुरी तरह ऊब नहीं जाओगे? क्या तुम्हारा सबसे प्रिय स्वादिष्ट भोजन भी तुम लगातार 3 दिन तक हर बार खा सकते हो? चौथे दिन वह भी तुम्हें बेस्वाद और पांचवें दिन अत्याचार लगेगा !"

" फिर अनंत काल तक तो उत्तम से उत्तम सुख भी नरक की पीड़ा के समान ही लगेगा न? फिर जरा ये भी सोचो कि आयु चाहे 1 दिन की हो या 100 साल, क्या उसमें किये गए अच्छे बुरे के लिए अनंत काल तक की पीड़ा या सुख कभी उचित हो सकता है?"

भक्त : " प्रभु वो तो आप परीक्षा लेते हैं न कौन अच्छा है कौन बुरा है ? जो अच्छा हो उसे स्वर्ग जो बुरा उसे नरक!"
भगवान : " अच्छा, ये सोचो, तुमलोग मानते हो मैं सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी हूँ। अगर मैं सर्वज्ञानी हूँ तो ऐसा क्या है जो मुझे पहले से क्या नहीं पता की मैं जिसे जानने के लिए कोई परीक्षा लूँ?"

भक्त '' तो आपने पाप और पुण्य क्यों बनाया?"
भगवान "मैं क्यों बनाऊंगा? कोई भगवान जैसी एंटिटी पाप जैसी चीज़ क्यों बनाएगा?"
भक्त "हाँ प्रभु, सही कहा, हां वो पाप तो शैतान ने बनाया, आपसे  विद्रोह करके।"

भगवान "लेकिन सोचो, तुम्हारे हिसाब से शैतान को तो मैंने ही बनाया, क्योंकि तुम्हारे हिसाब से मेरी मर्ज़ी के बिना कुछ बन ही नहीं सकता, है न?

भक्त "हां भगवान लेकिन शैतान ने बाद में तो आपसे विद्रोह कर दिया था ,न!" 
भगवान " तो क्या ये विद्रोह मिरी मरज़ी के बिना हो सकता था? या अगर में सर्वज्ञानी हूँ और अगर मैने शैतान को बनाया तो क्या उसे बनाते  मुझेे पहले  नहीं पता था  वो क्या करेगा!"

भक्त बुरी तरफ कन्फ्यूज हो चुका था,बोला " प्रभु मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा।"

भगवान " मतलब बिलकुल ही साफ है। तुम्हारी ये जो मान्यताएं हैं की तुम्हारा एक दयालु , सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान भगवान  है जिसने शैतान को बनाया जिस शैतान ने  उनसे विद्रोह करके पाप जैसी चीज़ को बनाया। ये सारी मान्यताएं आपस में परस्पर विरोधी यानी mutually exclusive हैं। इसीलिए ये सारी एक साथ सही हो ही नहीं सकती। जैसे अगर मैं दयावान सर्वशक्तिमान भगवान हूं, और सर्वज्ञानी भी हूँ तो शैतान जैसी किसी चीज को मैं बना ही नहिं सकता. और अगर शैतान है तो जिसे भगवान मानते हैं वो दयावान और  सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता और इस कारण  वो भगवान नहीं।और अगर संसार में सब कुछ मेरी ही ईच्छा से होता है तो मैं खुद ही उसे करने के लिए  तुम्हे क्यों अनंत काल तक पीड़ित करूंगा?"

भक्त " फिर ये किताबें जिन्हे में जीवन भर मानता रहा, जिनमें ये सब लिखा हुआ था? "

भगवान " मैंने तो कोई किताब लिखी नहीं। और मुझे किसी से लिखवाने की भी कोई जरूरत भी क्यों होगी। मुझे तुम्हारे मन तक पहुंचने के लिए किसी किताब, किसी आदमी, किसी माध्यम की भी क्यों आवश्यकता होगी?
मुझे तुम्हें जो देना था वो बनाने वक़्त ही दे देना था। है न? तो मैने दिया, तुम्हें विवेक दिया, तुम्हे अच्छे और बुरे की समझ दी कि अब अपनी जिन्दगी को अपनी समझ से जी भर के खुशी से जियो।  तुम स्वयं बताओ की क्या किसी को दुख देने में अच्छा लगता था, खुशी मिलती थी ?

भक्त " नहीं प्रभु, पर दूसरों को दुख पहुंचते समय मुझे तो लग रहा था की मैं आपके सैनिक के रूप में आपके लिए लड़ रहा था ताकि आपको न मानने वाले खत्म हो जाए और सर्वत्र आपका राज हो!'

भगवान " जब में करोड़ों ग्रहों, पूरे अनंत ब्रहम्माण्ड , पूरी सृष्टि का मैं ही एकमात्र निर्माता , पिता औऱ मालिक हूँ ही फिर कैसा सवाल लड़ाई, राज पाट, और सेना बनाने का, राज्य जीतने और हारने का?

भक्त " तो अगर स्वर्ग भी नहीं, नर्क नहीं, तो अंततः मृत्यु के पश्चात क्या है?"

भगवान " कुछ भी नहीं। मृत्यु अंत है। "
भक्त :"तो क्या मृत्यु के बाद कूछ भी नहीं? फिर जीवन जीने का उद्देश्य क्या रहा?"

भगवान "जीवन का एकमात्र उद्देश्य है इस सुन्दर जीवन को जी भर कर जीना, सुख से जीना , आनंद से जीना, ये उद्देश्य क्या कम है?"

भक्त: "अच्छा ये बताइये क्या सारे भिन्न भिन्न सम्प्रदाय वाले सभी सम्प्रदाय वाले आपकी ही पूजा करते हैं मानते हैं? "

भगवान: " मुझे सिर्फ वही मानते हैं जो सभी इंसानों, जीवों, यानी मेरे सारे बच्चों को मानते हैं उनसे प्रेम की भावना रखते हैं।"

भक्त: "लोग तो आपकी कई कई रूपों में पूजा करते हैं, क्या यही आपका असली रूप है?"

भगवान हँसे " मेरा जो रूप तुम्हारे मन मे है, कल्पना में है, मेरा वही असली रूप है । अन्यथा हर प्राणी, हर वस्तु, तुम स्वय भी मेरा रूप हो । मुझे किसी मनुष्य जैसे शरीर की आवश्यकता ही क्यों हो, या वही मेरा रूप क्यों हो?  "

भक्त : " प्रभु अगर कोई स्वर्ग नरक ही नही तो आप रहते कहां हैं? और ये जहां हम है वह जगह क्या है?"

भगवान " मैं सर्वव्यापी हूँ, एक एक जीव, वस्तु, एक एक कण में हूँ। और ये जगह जहां हम बात कर रहे हैं,  तुम्हारे खुद के अंतर्मन में है|"

भक्त " तो क्या में आपसे कभी भी बात कर सकता हूँ? "

भगवान "क्यों नहीं, जब भी शांत होकर अपने मन से सवाल पूछोगे, तो मेरा जवाब भी मिलेगा।"

भक्त : "फिर भगवान ये तो गलत हुआ न की लोग अलग अलग किताबों, धर्मों के लिए एक दूसरे से लड़ रहे हैं, एक दूसरे को मार रहे हैं, काट रहे हैं। आप कुछ क्यों नहीं करते?'

भगवान : " मैने किया है। मैने सबको विवेक दिया, सही गलत चुनने की शक्ति दी। क्या वो उसे इस्तेमाल करते हैं? ज्यादातर लोग वही मानते हैं जो वो अपने मां बाप को मानते देखते है, जो उनके बड़े उन्हें बताते हैं। वो स्वयं के विवेक से उसे क्यों नहीं समझने की कोशिश करते?"

भक्त :"फिर आज आपने मुझसे कैसे बात कर ली?"
भगवान: " क्योंकि तुम जो कर रहे थे उसे लेकर तुम्हारे मन में कई सवाल थे , बड़े संदेह थे, तो आज तुम्हारे ही अंतर्मन से मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दे रहा हूँ!"

भक्त : " प्रभु, मैं अब समझ गया , अब में वापस जाकर सभी को यही सब बताऊंगा। मैं अब आपके लिए यही करूँगा जीवनभर!"

भगवान फिर मुस्कुराए: " मेरे लिए नहीं। तुम अभी भी पूरा नहीं समझे। जाओ, जिओ, आनंद से रहो, दूसरों से, संसार से, स्वयं से प्रेम करो। मेरे लिए नहीं करो, इसलिए करो की तुम्हे ऐसा करके अच्छा लगेगा, प्रसन्नता मिलेगी।"

भक्त :"अब समझा प्रभु!! धन्य है आपकी सृष्टि!"

भक्त प्रणाम करने झुक कर उठा तो वहां कोई नहीं था, अंधेरा था, फिर अचानक उसे झटका सा लगा ,उसे लगातार गिरने की अनुभूति हुई, बेहोशी छा गई।

आंख खुली तो वो अस्पताल के ICU में था, उसकी पत्नी, उसके बच्चे उसके आसपास खुशी से रो रहे थे और हंस भी रहे थे।

उसे सबने बताया की हादसे के बाद उसकी मृत्यु हो गई थी, दिल की धड़कन बंद हो गई थी, सांस रुक गई थी और डॉक्टर ने उसे मृत घोषित भी कर दिया था, लेकिन शवगृह में जाते समय में अचानक उसके शरीर में जोर का झटका सा आया और फिर सांसें  चलनी शुरू हो गई। सभी इसे भगवान का चमत्कार मान रहे हैं। पत्नी ने कहा की उसने भगवान के लिए तीर्थयात्रा का और बड़ी पूजा की मन्नत की है।

वो मुस्कुरा दिया और परिवार को हंसते हुए गले लगा लिया।

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