बच्चों को पढ़ाना है तो इन्सानियत पढ़ाएं मजहब न पढ़ाएं
इंसान के बच्चे को इंसान रहने दें हिंदू मुसलमान न बनाएं
उस दुनिया में क्या मिलेगा ,ना मिलेगा ये कब किसने है जाना,
उन वादों के इरादों में कमसकम इस दुनिया को न जलाएं,
भाइ की जान ले के क्या कोई बाप को कर सकेगा खुश ,
किताबें कुछ भी कहें , पर हम आखिर इतना भूल न जाएं,
अगर हमने अपने माने प्रभु को पूरे सृष्टि का मालिक ही है माना,
फिर कुछ वर्ग गज के झगड़ों को उसके अस्तित्व का मसला न बनाएं,
तुम्हारी जगह तुम भी सही, हमारी जगह हम भी, दोनों सही,
आयें "जियो और जीने दो" से ऊपर कोई भी उसूल ना बनाएं!
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